गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
अकेले बिना बात के मुस्कुराना
मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
बेचैन हैं दिन, हैं बेताब रातें
करने को बाकी हैं कितनी ही बातें
मगर उसके आते ही सब भूल जाना
मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
मासूम फूलों की खुशबू में तू है
कोई भी हो लगता है पहलू में तू है
हर चेहरे में चेहरा तेरा उभर आना
मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
मैं चाँद हूँ, तुम मेरी चाँदनी हो
मेरी सूनी रातों की तुम रोशनी हो
तुम्हें पाने के रोज़ सपने सजाना
मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
मेरी सारी गज़लें मुकम्मल हैं तुमसे
शेर-ओ-सुखन की ये महफिल है तुमसे
तुम पर ही लिखना, तुम्हीं को सुनाना
मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]