गीतिका
फूूंक दे जो घर, मशाले वो न जलनी चाहिए
प्यार फैले, नफरते दिल में न पलनी चाहिए
काट ड़ाले पर,उसे उड़ने नही उसने दिया
कैद से उसकी चिड़ी बेबस निकलनी चाहिए
वो गिरे ऐसे नजर से फिर नही वो उठ सके
दोस्तो चाले तुम्हे ऐसी न चलनी चाहिए
जो हमेशा जख्म देती,जो नही देती दुआ
बात करने की तुम्हारी लय बदलनी चाहिए
भावनाएं सर्द हैं अब आँख में पानी नही
जो जमा है बर्फ,वो अब तो पिघलनी चाहिए
— शालिनी शर्मा