कविता

मधुयामिनी

मधुयामिनी

धीरे धीरे सकुचाते सिमटते
मैंने लंबा सा घूंघट उठाया है
लबों पे कसक, आँखें हैं बंद
कमरे में चांद निकल आया है

लाज के पहरे, चेहरे पे डाले
माथे पे पसीना चुहचुहाया है
कपोलों पे लाली, हिरणी सी आँखें
बंद पलकों में तूने क्या छुपाया है

सुराहीदार गर्दन, सुतवाँ नाक
ऐसी सूरत पे दिल ढल आया है
ऐसा सौंदर्य मूर्त पाकर
मेरा सितारा जाग आया है

होंठ काँपे हल्के, बोले – प्रीतम
तुम्हारी याद बहुत सतायी है
बिना पलक गिराए मैंने पूछा
ऐसी आवाज कहाँ से पायी है

मुस्कुराकर बोली – मेरे पिया
ज्यादा न बड़ाई करो, रूठ जाऊंगी
हमारा तुम्हारा यह प्रथम मिलन
प्रीत भरे रूठा मनौवल में गुजारूंगी

मैंने पलकों में जो सपने बुने हैं
उसे तुम करो अहसास
जिस दिन मेरे सपने तोड़ोगे
उसी दिन पाओगे मेरी लाश

प्यार से आँखें मिलाकर बोला
दिल चीरकर दिखा सकता काश
मेरी ख़्वाबों की रानी औ जाने जाँ
मेरी हर सांसों में बसे तेरे सांस

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार