मुक्तक/दोहा

मुक्तक

नही कुछ भी है स्थाई , समय का खेल है सारा ।
खटकेगा वो आँखों में , कभी जो था हमें प्यारा ।।
प्यार हो वार हो या मित्र या अपने पराये हो ।
नीयत नियम वचन सबके , स्वार्थ के सामने हारा ।।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)