लघुकथा: जुबां
“तेरी बहू के संस्कारों की दाद तेरी पड़ेगी। शादी के पांच साल बाद भी पल्ला सिर से नहीं हटा है।” प्रीतो से मिलने आई उसकी सहेली शांतिदेवी सुमन की फोटो देखते हुए बोलीं।
इससे पहले कि प्रीतो कुछ ज़बाब देती, शांतिदेवी की उपस्थिति से अंजान, सुमन कमरे में आते ही चिल्लाई, “हद होती है कामचोरी की। बाहर से कपड़े कौन…?” शांतिदेवी पर नज़र पड़ते ही वह सकपका गई और बात अधूरी छोड़ कमरे से बाहर निकल गई ।
पर तब तक उसकी जुबां उसके संस्कारों का अंतिम संस्कार कर चुकी थी ।
अंजु गुप्ता “अक्षरा”