मिट्ठू
मिट्ठू हूं मैं
मीठा बोलूं
डाल डाल पर
मैं हूं डोलूं
लाल चोंच मेरी
लगे है प्यारी
कंठ मेरे है
काली धारी।
भाषा कोई हो
सीख मैं जाऊं
पक्षियों का पंडित
मैं कहलाऊं
सुन मेरी तोती
तूं जीती मैं हारा
यही तरु कोटर बनेगा
अब घर हमारा !
— अंजु गुप्ता “अक्षरा”