कविता

मैं मेहनतकश

प्रचंड गर्मी हो
या कड़क शरद,
सिर पर सजा कर
मेहनत की ओढ़नी,
और चेहरे पे
हँसी का गहना,
ऊँचे भवनों की… नींव सजाते
दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी
… मैं मेहनतकश !!

घूल-गर्द से
सना बदन,
आँखों में सजाए
सपनों की चमक,
कंधों पर लेकर
विकास का भार,
पक्की सड़कों का … जाल बिछाते
दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी
… मैं मेहनतकश !!

ईंटों से भारी
जिम्मेवारी का भार,
हो जाती हूं अक्सर
शोषण का शिकार,
फुर्सत किसे देखे
हाथ/ पांव के छाले
कुदाल लिए… जमीं को खोदते
दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी
… मैं मेहनतकश !!

पानी से ज्यादा
पसीने से नहाती
जीने की चाह में
खतरों से टकराती
मान संघर्ष को
उपासना अपनी
फैक्ट्रियों में… पितृसत्ता के दमन को सहती
दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी
… मैं मेहनतकश !!

— अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed