लगे गुलाबी धूप
फागुन में हैं गुण भरे, लगे गुलाबी धूप।
सघन शीत में था बुझा, सुंदर निखरा रूप।।
जमे दिवस घुलने लगे, मिला फाग का ताप।
खुशियाँ बिखरी गेह में, दूर हुए संताप।।
राह ताकती कामिनी, खड़ी बिछाये नैन।
तप्त देह ज्यो नेह जल, मिले पिया सुख चैन।।
आलस के दिन आ गये, है अलसाई देह।।
धूप लगी है फैलने, लेकर गठरी नेह।।
उपले अनय अभाव के, जलें होलिका संग।
न्याय नीति सद्भाव के, महक उठे शुभ रंग।।
— प्रमोद दीक्षित मलय