खट्टा-मीठा: हाय रे हाय मैंने देखा…
एयरकंडीशंड डिब्बों में हजारों किलोमीटर की ‘पैदल’ यात्रा करके मैं कश्मीर पहुँचा। वही कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है। मेरे स्वागत में चारों ओर भीड़ हो गयी थी। उसी भीड़ में एक समूह की तरफ इशारा करके किसी ने मुझे बताया कि ये जेहादी आतंकवादी हैं। मैंने उनको ध्यान से देखा, उन्होंने भी मुझे देखा। मैं देखता रह गया। शायद उनके कहीं सींग-पूँछ हों। पर मुझे तो दो आँखें, एक नाक, दो कान, दो हाथ और दो पैर ही दिखायी पड़े। सींग-पूँछ गायब थे। बेचारे मासूम लोग हैं। मैं समझ नहीं पाया कि ये किधर से जेहादी हैं। मेरे भी सींग-पूँछ नहीं है। वैसे भी गधे के सींग नहीं होते। पता नहीं वे मुझे क्या समझ रहे होंगे।
खैर, मुझे बताया गया कि ये हाथों में फूल माला लेकर मुझे देखने आये हैं। ‘फूलमाला’ सुनते ही मुझे अपने पिता की याद आ गयी। उनको भी फूलमाला देने वाली एक लड़की ने मार डाला था। इसलिए मैंने जेहादियों को पास नहीं आने दिया। पर दूर से उनको देखता रहा। उन्होंने कुछ नहीं किया, मैंने भी कुछ नहीं किया।
मैं जानता हूँ कि जब तक धारा 370 थी, तब तक इनका जलवा था। बेचारे फूल देकर ही अपनी धाक जमा लेते थे। लाखों कश्मीरी हिन्दू इनके फूलों से घबराकर कश्मीर छोड़कर भाग गये। अब इसमें इन जेहादियों की क्या गलती। इनके फूल दूसरे के पास आते ही बम बन जाते हैं, तो ये क्या करें? इन फूलों से कारों में विस्फोट हो जाता है और 40 जवान मारे जाते हैं, तो सारी गलती उस कार की है, जिसमें आते ही फूल बम बनकर फट जाते हैं।
अब धारा 370 समाप्त हो गयी है, तो इनका रुतबा घट गया है। कम्बख्त पुलिस वाले इनको फूल भी नहीं देने देते, गोली मार देते हैं। ऐसा अन्याय ठीक नहीं। हमारी सरकार आयेगी, तो हम फिर धारा 370 लगायेंगे और इनके पुराने दिन वापस लायेंगे। यह मेरा वायदा है।
फिलहाल मैं इनको दूर से देखकर सलाम कर लेता हूँ। आप भी कीजिए।
— बीजू ब्रजवासी