ग़ज़ल
चढ़ान ही नहीं फकत उतार भी है ज़िंदगी
साया-ए-दीवार भी है, दार भी है ज़िंदगी
मुतमईन भी हूँ, चाहतें भी ज़िंदा हैं कई
करार भी है, थोड़ी बेकरार भी है ज़िंदगी
छोड़ कर अधूरी मुलाकात चल दिए थे जो
उनके लौटने का इंतज़ार भी है ज़िंदगी
ज़रूरतों और ख्वाहिशों के दरमियान डोलती
कभी है प्यार तो कभी व्यापार भी है ज़िंदगी
मुश्किलें बहुत हैं मैं भी मानता हूँ ये मगर
मुस्कुराओगे तो खुशगवार भी है ज़िंदगी
— भरत मल्होत्रा