बाल कविता – बादल
रुई से नरम बादल कितने अच्छे हैं ।
धुआं से सफेद बादल बने लच्छे हैं ।।
उमड़ – घुमड़ नभ में उड़ते जाते हैं ।
कभी गरजते रहते, कभी बरस जाते हैं ।।
काली -काली घटा अंधेरी बनाकर डराते हैं ।
बादल प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं ।।
कभी रात को तो कभी दिन को बरसते हैं ।
बादल सुबह-शाम जमकर बरसते हैं ।।
बादल अपनी मनमर्जी के मालिक होते हैं ।
कहीं सूखा तो कहीं मूसलाधार बनके बरसते हैं ।।
रुई से नरम बादल कितने अच्छे हैं ।
धुआं से सफेद बादल बने लच्छे हैं ।।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा