मुक्तक – होली का हुड़दंग
हास्य-व्यंग्य के संग, मचायें होली का हुड़दंग,
अबिर-गुलाल उड़ाकर छेड़ें, प्रीति-प्यार की जंग।
गुझिया खाकर, पिएं मिलाकर ठंढाई में भंग,
‘भान’,चलायें भरि पिचकारी, विविध काव्य के रंग।।
— उदयभान पाण्डेय ‘भान’
हास्य-व्यंग्य के संग, मचायें होली का हुड़दंग,
अबिर-गुलाल उड़ाकर छेड़ें, प्रीति-प्यार की जंग।
गुझिया खाकर, पिएं मिलाकर ठंढाई में भंग,
‘भान’,चलायें भरि पिचकारी, विविध काव्य के रंग।।
— उदयभान पाण्डेय ‘भान’