गीत – मधुकर तुम वापस तो आये
तुम क्या जानो पतझड़ में हम घुट घुट कर कैसे अकुलाये !
मधुकर तुम वापस तो आये !
अनावृत्त मुझको कर डाला , ठंड भरी काली रातों ने ।
मेरे तन मन को पीड़ा दी , हिम बयार की कटु बातों ने ।
मैं तरु सब चुपचाप सह गया ,अंतस में एक सृजन छुपाये ।
मधुकर तुम……………
पत्ता पत्ता उजड़ गया जब ,चले गये सारे खग उड़कर ।
मैं लाचार कहाँ को जाता ?, किसी ने नही देखा मुड़कर ।
दिन दिन गिनकर दुखड़ो के दिन,फिर मैनें चुपचाप बिताये।
मधुकर तुम…………………..
दुखड़ो के दिन चले गये है, बागों में उत्सव छाया है ।
मरकत मणि से चमके पत्ते, कलियों पर यौवन आया है।
हुई चंपई देखो पाकड़, लाल हुए सेमल शरमाये ।
मधुकर तुम………………………….
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी