यादों के पंख
यादें तो यादें होती हैं,
आती हैं कुछ बातें याद,
इसलिए वे यादें होती हैं,
कुछ मुद्दतों तक रहती हैं याद.
यादें लाजवाब होती हैं,
मधु-सी मीठी होती हैं यादें,
कड़वी-खट्टी-कसैली भी यादें,
सलोनी-सुनहरी भी होती हैं यादें.
किताबों में बंद होती हैं कुछ यादें,
दिल की डायरी में कैद कुछ यादें,
कहीं-न-कहीं कैद होती हैं यादें,
इसलिए तो कहलाती हैं यादें.
यादों के पंख लगा कुछ यादें,
तितलियां बन मंडराती हैं,
कुछ इधर-उधर हो जातीं,
फुर्र से कुछ उड़ जाती हैं.
बहुत कठिन होता है अक्सर,
तितलियों को बस में करना,
उससे भी कठिन होता है,
यादों पर अंकुश कसना.
यादों के पंख कतर सको तो अच्छा,
तितलियों को बस में कर सको तो अच्छा,
नहीं कर सकते तो बंद कर दो किताब,
यादों को खुद से भी छुपा सको तो अच्छा.
— लीला तिवानी