“शब्द बहुत अनमोल”
सोलह दोहे “शब्द बहुत अनमोल”
—
जिनको कविता की नहीं, कोई भी पहचान।
छन्दों के वो बन गये, आज कथित भगवान।1।
—
भरा पिटारा ज्ञान का, देखो आँखें खोल।
शब्दकोश में हैं भरे, शब्द बहुत अनमोल।2।
—
जिनकी अपनी है नहीं, चेतन प्रज्ञा मित्र।
कदम-कदम पर वो करें, हरकत यहाँ विचित्र।3।
—
सीधे-सीधे ही कहो, अपने मन की बात।
कविता में करना नहीं, घात और प्रतिघात।4।
—
दोहों में तो गणों का, होता बहुत महत्व।
गण भी तो इस छन्द के, हैं आवश्यक तत्व।5।
—
गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग।
दोहा रचने के लिए, नियम न करना भंग।6।
—
पतझड़ से जिनके हुए, गात-पात बदरंग।
उन बिरुओं का आज तो, खिला हुआ है अंग।7।
—
फागुन में मधुमास का ऐसा चढ़ा खुमार।
जीवन में बहने लगी, रंगों की रसधार।8।
—
आवारा मौसम हुआ, बरस रहा है प्यार।
होली की हुड़दंग में, रंगों की बौछार।9।
—
बैर-भाव को भूलकर, करिए सबसे प्रीत।
उपवन में खिलते सुमन, सुना रहे हैं गीत।10।
—
स्वस्थ रहें सब जगत में, दाता दो वरदान।
शीत ग्रीष्म-बरसात में, दुखी न हो इन्सान।11।
—
हरे-भरे सब पेड़ हों, छाया दें घनघोर।
उपवन में हँसते सुमन, मन को करें विभोर।12।
—
ज्ञान बाँटने से कभी, होंगे नहीं विपन्न।
विद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।13।
—
रत्तीभर चक्खा नहीं, लिया नहीं आनन्द।
छत्ते पर डाका पड़ा, लुटा सभी मकरन्द।14।
—
भूसी-चावल सँग रहें, तभी बढ़े परिवार।
हुए धान से जब अलग, बाँट खाय संसार।15।
—
कठिन नहीं साहित्य में, दोहों का विन्यास।
इनको रचने के लिए, करो सतत् अभ्यास।16।
—
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)