सच्ची मदद
नदी किनारे पेड़ थेदो जो,
झूम रहे थे मस्ती में,
चिड़िया एक बच्चों संग आई,
रहती थी अब तक बस्ती में.
एक पेड़ से कहा चिड़ी ने,
“विनती एक हमारी है,
कहो तो तुम पर नीड़ बना लूं,
बारिश आने वाली है.”
“नहीं-नहीं” कहा पेड़ ने,
चिड़िया को गुस्सा तो आया,
बड़ा घमंडी पेड़ ये निकला,
कह अपने मन को समझाया.
पूछा उसने दूसरे पेड़ से,
पेड़ खुशी से लगा झूमने,
शुक्र है कोई दिख तो पाया,
अच्छा हुआ जो आई घूमने.
“नीड़ बना लो चिड़िया रानी,
पूछने की क्या बात है!
दिल से स्वागत करता हूं मैं,
आज से अपना साथ है.”
बारिश आई इक दिन बड़े जोर से,
तुरंत बाढ़ भी थी आई,
जड़ से उखड़ा पहला पेड़,
बहने लगा, चिड़िया मुस्काई.
“शरण नहीं दी मुझको तुमने,
इसलिए तुम पर शामत आई,
मदद नहीं मेरी तुमने की,
उसी की है सजा यह पाई.”
बात चिड़ी की सुन कहा पेड़ ने,
“ऐसी बात नहीं थी बहिना,
मुझे पता था जड़ मेरी निर्बल,
तभी तो मैंने “नहीं” कही थी.”
माफ करो प्यारे मेरे भाई,
राज “नहीं” का समझ न पाई,
सच्ची मदद की थी आपने,
अब है बात समझ में आई.
— लीला तिवानी