कविता

उसने कैमरा उठा लिया

उसने कैमरा उठा लिया
आग की लपटें उठ रही थी
वो मुश्किल में फंसी हुई थी
मदद के लिए लगी चिल्लाने
तो लोगों ने कैमरा उठा लिया
अपने हाथों को लगी उठाने
लगी उम्मीद से गुहार लगाने
किसी ने फ़र्ज़ अदा न किया
उसकी अब सांसे टूट रही थी
सड़क पे हुई दुर्घटना बड़ी थी
कोई न आया उसे तब बचाने
पर सभी ने कैमरा उठा लिया
एक अमूल्य जीवन को बचाने
इंसानियत के फ़र्ज़ को निभाने
क्यूँ किसी का दिल नहीं किया?
लगी उसको तो भूख बड़ी थी
कचरे के डिब्बे में पूड़ी पड़ी थी
गया वो बेबस जब उसे उठाने
उसका एक वीडियो बना लिया
जा न सका कोई उसे खिलाने
बस लाचारी का मज़ाक बनाने,
कैसे इस काम को अंजाम दिया?
— आशीष शर्मा ‘अमृत’

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान