बरसते मौसम
आंखों में ऐसे बस गए हैं ये बरसते मौसम
दीदार की ख़्वाहिश में लम्हों को गिनते मौसम
यादों के कारवां लिये गुज़िश्ता वक्त के
उस ख़ुशनुमां मंज़र को फिर तरसते मौसम
होने लगे वो आमद दस्तक दिये बिना
के करके यूं आराईश से संवरते मौसम
उनकी परस्तिश का इरादा है आरजू भी
ये अनकहे जज़्बात बयां करते मौसम
उल्फ़त का रुह पे यूं होने लगा असर
के शबनमी अश्कों में यूं पिघलते मौसम
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”