हथेलियों पे रच के मुस्कुरा रही है मेहंदी।
तुम्हारे संग ये भी शरमा रही है मेहंदी।
मरमरी हाथों से आती है प्यार की खुशबू,
राजे मोहब्बत समझा रही है मेहंदी।
मैं क्या मिसाल दूं इन गोरी हथेलियों की,
मेरी निगाहों को बस भरमा रही है मेहंदी।
कितनी खुशनसीब है जो ये हाथों पे छाई है,
अपने मुकद्दर पे इतरा रही है मेहंदी।
आज मुस्कुराएंगे मोहब्बत के फूल बाहों में,
चुपके चुपके से यही गुनगुना रही है मेहंदी।
तुम्हारी हर अदा तस्वीरे कयामत है,
मगर “सागर” मुझे तड़फा रही है मेहंदी।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”