जागो सोने वालो
नींद क्यों रात भर नहीं आती!
गाते हैं गाने वाले
कैसे वे नादान भोले-भाले!
जगे हुओं के लिए गाएं
तो समझ में आए!
यहां तो सब हैं सोए हुए
जाने कहां हैं खोए हुए!
अत्याचार पल रहा है,
दुराचार खल रहा है,
भ्रष्टाचार छल रहा है,
स्वार्थ का जहर घुल रहा है,
परमार्थ सिर धुन रहा है,
हैवानियत आती कहां बाज है!
इंसानियत का कहां दिख रहा राज है!
महंगाई है सिर पर मंडरा रही,
बेरोजगारी की बदरी है गहरा रही,
बेअदबी फन उठाकर नाच रही,
गद्दारी वफ़ा की कथा बांच रही.
यहां तो सब हैं सोए हुए
जाने कहां खोए हुए!
गाते हैं गाने वाले
नींद दिवस मनाने वाले
नींद क्यों रात भर नहीं आती!
गाना है तो गाओ
जागो सोने वालो,
गाते हैं गाने वाले
कैसे वे नादान भोले-भाले!
जगे हुओं के लिए गाएं
तो समझ में आए!
यहां तो सब हैं सोए हुए
जाने कहां हैं खोए हुए!
अत्याचार पल रहा है,
दुराचार खल रहा है,
भ्रष्टाचार छल रहा है,
स्वार्थ का जहर घुल रहा है,
परमार्थ सिर धुन रहा है,
हैवानियत आती कहां बाज है!
इंसानियत का कहां दिख रहा राज है!
महंगाई है सिर पर मंडरा रही,
बेरोजगारी की बदरी है गहरा रही,
बेअदबी फन उठाकर नाच रही,
गद्दारी वफ़ा की कथा बांच रही.
यहां तो सब हैं सोए हुए
जाने कहां खोए हुए!
गाते हैं गाने वाले
नींद दिवस मनाने वाले
नींद क्यों रात भर नहीं आती!
गाना है तो गाओ
जागो सोने वालो,
— लीला तिवानी