कविता

जागो सोने वालो

नींद क्यों रात भर नहीं आती!
गाते हैं गाने वाले
कैसे वे नादान भोले-भाले!
जगे हुओं के लिए गाएं
तो समझ में आए!
यहां तो सब हैं सोए हुए
जाने कहां हैं खोए हुए!
अत्याचार पल रहा है,
दुराचार खल रहा है,
भ्रष्टाचार छल रहा है,
स्वार्थ का जहर घुल रहा है,
परमार्थ सिर धुन रहा है,
हैवानियत आती कहां बाज है!
इंसानियत का कहां दिख रहा राज है!
महंगाई है सिर पर मंडरा रही,
बेरोजगारी की बदरी है गहरा रही,
बेअदबी फन उठाकर नाच रही,
गद्दारी वफ़ा की कथा बांच रही.
यहां तो सब हैं सोए हुए
जाने कहां खोए हुए!
गाते हैं गाने वाले
नींद दिवस मनाने वाले
नींद क्यों रात भर नहीं आती!
गाना है तो गाओ
जागो सोने वालो,
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244