दस किलो बादाम
“सेठ जी, एक किलो बादाम दीजिए.” सेठ छगनलाल ने दुकान वाले सेठ मगनलाल को कहा.
सेठ जी के सहायक उनके बादाम देने ही लगे थे कि एक साधारण-सा दिखने वाला आदमी भी बादाम लेने आया और दस किलो बादाम देने के लिए कहा.
“दस किलो बादाम!” सेठ जी को हैरानी हुई. बादाम लेने के बाद वे रुक गए. उस आदमी के जाने के बाद उन्होंने दुकान वाले सेठ जी से पूछा- “यह आदमी साधारण-सा दिख रहा था, फिर भी दस किलो बादाम ले गया! आश्चर्य है!”
“इसमें आश्चर्य कैसा! यह आदमी तो हर महीने दस किलो बादाम ले जाता है.” सेठ जी की हैरानी और बढ़ गई.
“हर महीने यह दस किलो बादाम कैसे ले जाता है, इसके पास इतना धन है!”
“यह बात मत पूछिए! इसके मालिक सेठ लालाराम अकेले ही नौकर के साथ रहते थे. वे बहुत कंजूस थे, वे रुपया खर्च करने के बजाय जोड़ने में ज्यादा विश्वास रखते थे. उन्होंने अपनी वसीयत इस नौकर के नाम कर रखी थी. वो तो अब परलोक सिधार गए और चल-अचल सारी सम्पत्ति नौकर को मिल गई.”
वाह, यह तो वही हुआ न! “अंधा पीसे कुत्ता खाए! मुझे भी दस किलो बादाम दीजिए.”
— लीला तिवानी