भजन करे सिमरन करे, फिरा न मन का फेर।
ध्यान सदा धन में रहे, लिया मोह ने घेर।
साधु संत का रूप धर, मन भीतर शैतान।
छल कपटी ढोंगी बना, ढूंढ रहा भगवान।
काम क्रोध मद लोभ में, सदा सुरा का पान।
नारी नयनों में बसे, करे ईश का ध्यान।
माया ठगनी छोड़ दे, करो ईश से प्रीत।
मन भीतर संयम रहे, चंचल मन को जीत।
रूप ईश का मान के, करो सभी से प्यार।
कर्म करो सुथरा तभी, हो जीवन उद्धार।
मेरी मेरी मत करो , तज मोह अहंकार।
आया खाली हाथ तू, जाए हाथ पसार।
सुंदर काया दी तुझे, ज्यों उपवन का फूल।
सिमरन प्रभु का छोड़ के, गया कर्म तू भूल।
प्रेम सदा मन में रहे, अमृत भरे हों बोल।
देख सदा शुभ नैन से , मन के ताले खोल।
शिव धो ले मन मैल को, सुन सत्संग विचार।
साध संग नित कीजिए, छूट जाएं विकार।
— शिव सन्याल