मधुमास सबको भा रहा
खिल उठे हैं बाग-वन मधुमास सबको भा रहा।
होलिका के बाद में नव वर्ष चलकर आ रहा।।
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वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये।
आम, जामुन-नीम भी मदमस्त हो बौरा गये।।
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जोड़कर तिनके बया है नीड़ अपना बुन रहा।
देवपूजन के लिए नव सुमन माली चुन रहा।।
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डाल पर बैठे हुए कोकिल तराने गा रहे।
तितलियाँ-मधुमक्खियाँ मधु चाव से हैं खा रहे।।
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आ गये नवरात्र अब व्रत-जागरण को कीजिए।
पात्र हैं जो दान के उन पर कृपा भी दीजिए।।
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गुरुजनों, माता-पिता का मान करना चाहिए।
आय के अनुसार कुछ तो दान करना चाहिए।।
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देश की सन्तान को कुछ काम आना चाहिए।
मातृभू का और माँ का ऋण चुकाना चाहिए।
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आओ लहरायें पताका और हम सब प्रण करें।
देश के हित में जियें हम देश के हित में मरें।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’