आँख फेरो सर झुकाओ चुप रहो
आँख फेरो सर झुकाओ चुप रहो
आह को दिल में दबाओ चुप रहो
झूठ के बाज़ार में सच बोलकर
भेंट मत अपनी चढ़ाओ चुप रहो
फ़र्ज वो अपना निभाकर फ़ँस गया
ख़ैर तुम अपनी मनाओ चुप रहो
दर्द उनका देखकर, छलके हुए
अश्क पलको में छुपाओ चुप रहो
बेहिसी का बेबसी का हुक्म है
कुछ सुनो मत कुछ सुनाओ चुप रहो
सब्र ही हथियार है मजलूम का
सब्र अपना आज़माओ चुप रहो
मर चुके हो अब करो ये काम भी
लाश अपनी ख़ुद उठाओ चुप रहो
— सतीश बंसल
१९.०३.२०२३