आज मैं आनन्द में हूँ!
आज मैं आनन्द में हूँ,
सृष्टि मेरी सौम्य है;
देह मम स्फूर्ति में है,
कर्म करने योग्य है!
थकावट सारी मिटी है,
ऊर्जा उनसे मिली है;
अंग हर सक्रिय हुआ है,
चेतना में रंग भरा है!
वनस्पति औषधि सुधा दे,
यक्र हृद को गति दिई हैं;
लिए आमाशय तरंग में,
वृक्क संचालित किई हैं!
रोध जितने रहे नाड़ी,
तिरोहित शायद हुए हैं;
सुषुम्ना ना उन्मना है,
मन अभी जागृत प्रचुर है!
शक्ति है सामर्थ्य है अब,
ध्यान करने को प्रवृत है;
‘मधु’ मनोमय कोश निर्मल,
किए हैं प्रभु ढ़िंग लगे हैं!
— गोपाल बघेल ‘मधु’