गीतिका
आदमी आदमी को खाता है ।
और फिर अश्क भी बहाता है।
आग है सिर्फ पेट की इसके,
जहां भर को मगर जलाता है।
झूठ दुनिया के याद रखता है,
मौत के सच को भूल जाता है।
अंत में साथ में कुछ नही जाता,
उम्र भर सिर्फ यह जुटाता है।
जबकि सोना है हमेशा के लिए,
नींद औरों की क्यों उड़ाता है ?
—————© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी