कविता

मदिरापान

आइए
मदिरापान करते हैं
आपस में घमासान करते,
घर परिवार तबाह करते हैं
अपना नाम करते हैं।
जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं
लोगों की जुबां पर चढ़ते हैं
मदिरापान नशा नहीं
शान से दुनिया को बताते हैं,
मदिरा हमसे नहीं हम मदिरा से हैं
यही पैगाम देते हैं,
राष्ट्र के विकास में मदिरापान से
हम भी अपना यथाशक्ति योगदान देते हैं
राष्ट्र भक्त कहलाते हैं
समाज सेवा के नाम पर
मदिरापान अनिवार्य हो का अभियान चलाते हैं,
समाज सेवी कहाते हैं,
बड़ा सम्मान पाते हैं
समय पूर्व दुनिया से विदा होकर
बड़ा आराम पाते हैं,
यह मदिरा स्त्रोत सबको सुनाते हैं
अपना मदिरा चालीसा हर घर तक पहुंचाते हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921