निंदक नियारे राखिए
बाज़ारवाद के माहौल में
बिकती है हर चीज सही!
क्या निर्जीव, क्या सजीव
सभी के मोल लगते हैं सही!
मान-मर्यादा की नीलामी में
कुर्क हो गए जज़्बात सभी!
सोसल मीडिया के दर्पण में
अपने पराए के बिगड़ गए हैं समीकरण सभी!
अहंकार का पुलिंदा लिए
हर कोई भटकता रहता है सही!
मानवता के मूल्यों को
नहीं आंकता है कोई सही!
‘निंदक नियारे राखिए ‘ रहिमन की युक्ति
धूल-धूसरित हो गई है कहीं !!
— विभा कुमारी “नीरजा”