चिड़िया
चिड़िया
तू मर जाना
पर पिंजरे में मत जाना।
मानव ने
अपने मनोरंजन की ख़ातिर
तेरी आज़ादी का हनन किया
वन वृक्ष काट दिए सब
पिंजरे में तुझे बन्द किया।
चिड़िया
तू पिंजरे में मत जाना।
कहीं तुम उड़ न जाओ
पंख तुम्हारे काट दिए जायेंगे
वह भी तो
कमरे की सज्जा मे
नयी पहचान बनायेंगे।
चिड़िया
तू पिंजरे में मत जाना।
एक दिवस आज़ाद रहकर
मर जाओ तो अच्छा है
पिंजरे में बन्द होकर
रोज़ रोज़ मर जाने से।
चिड़िया
तू पिंजरे में मत जाना।
पिंजरे में बंद होकर
तू तो मात्र खिलौना है
स्वच्छंद आकाश में विचरण करना
तेरा बस एक सपना है।
एक बार पिंजरे में आकर
कभी नहीं तू उड़ पायेगी
अपनी व्यथा सुना पायेगी
संगी साथी से मिल पायेगी
पिंजरा तेरी सेज बना है
पिंजरे में तू मर जायेगी।
चिड़िया
तू मर जाना
पर पिंजरे में मत जाना।
मानव का स्वभाव विचित्र है
आज़ादी का का भाव विचित्र है
अपनी आज़ादी बंधन मुक्त
तेरी आज़ादी बंधन युक्त है।
मुक्ति और युक्ति का उसने
ऐसा जाल बिछाया है
पंख काटकर तेरे उसने
मुक्ति का स्वाँग रचाया है।
युक्ति उसकी काम में आयी
चिड़िया तू आज़ाद तो है
पर पिंजरे से भाग न पायी।
चिड़िया
तू मर जाना
पर
जीते जी
किसी इंसान के हाथ न आना।
चिड़िया
तू पिंजरे में मत जाना।
— डॉ. अ कीर्ति वर्द्धन