राजनीति से श्रेष्ठ राष्ट्रनीति
समाज चाहे जितना विकसित हो जाए उसे व उसके जीवन को राजनीति अवश्य प्रभावित करती है,क्योंकि जो सत्ता आप पर शासन करती है उसे प्राप्त करने का लोभ हर व्यक्ति को होता है। प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है सत्ता ताकत तथा लोकप्रियता उसके आसपास रहे, परंतु इस सांसारिक मोह लोभ के आडंबरों में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो राष्ट्र व संस्कृति को सर्वोपरि मानकर अपना पूरा जीवन इसके उत्थान में खपा देते हैं। भारत ऐसे ही मनीषियों की कर्म स्थली रहा है। इसी कारण भारत ने अध्यात्म व संस्कृति में ईतना विकास किया कि विश्व का कोई देश भारत के समकक्ष नहीं है। भारत ने विश्व को संस्कृति का पाठ पढ़ाया है और आगे भी विश्व की बागडोर संभालने का काम भारत ही करेगा यह निश्चित है। इसके पीछे भारत की ” वसुदेव कुटुंबकम ” के विचारों वाली सनातनी संस्कृति आधार है जिससे प्रेरित होकर पूरा विश्व आज भारत के विराट व्यक्तित्व को नमन करता है।
भारत में रहने वाले भारत के नागरिकों को भी आवश्यक रूप से यह समझना होगा कि हमारी संस्कृति का मूल आधार क्या है ? हम किस प्रकार जीवन यापन कर रहे हैं ? हमारे परंपराएं क्या है ? हम अपने नैतिक धर्म व मूल्यों का सही प्रतिपादन कर रहे हैं या नहीं ! यदि भारत का हर नागरिक राष्ट्रवादी तथा धर्म परायण बन जाए तब भारत को रोकना पूरे विश्व के लिए असंभव होगा क्योंकि चाहे ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, चरित्र आदि किसी भी परिमाण में भारत की तुलना विश्व का कोई देश कभी नहीं कर सकता। भारत के इस मूलाधार को छिन्न भिन्न करने में मिशनरी स्कूल व मैकाले शिक्षा पद्धति ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। बचपन से ही बालक व बालिकाओं को अंग्रेजों व मुगलों की गुलामी का इतिहास पढ़ाया जाता है, उनका इतिहास रटने को कहा जाता है, आखिर गुलामी का इतिहास पढ़कर स्वाभिमान की जड़ें कैसे विकसित हो सकती है ? यह छोटी सी बात पूर्व सरकारों को समझ नही आई ? देश की स्वतंत्रता के बाद ही गुलामी के हर चिन्ह, इतिहास, नाम को मिटा देना था। केवल स्वाभिमानी देशभक्त क्रांतिवीरों व योद्धाओं का इतिहास नई पीढ़ी को पढ़ाया जाना चाहिए था, परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा नही हो सका। इसी कारण माओ और लेनिन को पढ़ने वाले मानसिक अंग्रेजी गुलाम आज हमें जगह जगह आजादी मांगते, अधिकार मांगते दिखाई देते है, जबकि जिम्मेदारी और कर्तव्य की बात कोई नही करता। राष्ट्र के लिए जीने की बात कोई नही करता, सबको अधिकारों के लिए मरने मारने के लिए भड़काया जा रहा है। बस यही से मैकाले शिक्षा पद्धति और मिशनरी स्कूलों ने नई पीढ़ी को राष्ट्र से अलग करना आरंभ कर दिया।
बची हुई कसर पाश्चात्य संस्कृति, फिल्म जगत, टीवी मोबाइल तथा विदेशी विचार वाले साहित्यकार इतिहासकार आदि ने पूरी कर दी। देश की जड़ो को खोखला करने में जितना जिम्मेदार फ़िल्म जगत है, उतने ही चापलूस और लोभी इतिहासकार व साहित्यकार भी। नई पीढ़ी के लिए केवल वही साहित्य उपलब्ध होना चाहिए जो राष्ट्र के लिए उनके स्वाभिमान को बढ़ाये। उन्हें देशभक्त बनाये। परन्तु आज भारत में ही हर प्रकार का भड़काऊ, हिन्दू विरोधी, सनातन विरोधी, देश विरोधी साहित्य भरा पड़ा है। यह षड्यंत्र दशकों से अविराम हो रहा है, जिसके मूल में भारत व भारतीय संस्कृति के पतन का उद्देश्य निहित है। जो भारत कुछ दशक में ही विश्व का नेतृत्व करने योग्य देश बनने वाला था वह भारत आधुनिकता पाश्चात्य संस्कृति मिशनरी शिक्षा के दलदल में इस प्रकार फंसा है कि अब जनता भी इस लोभ और मोह की आदी हो चुकी है ।
राजनीति भी इस विष से अलग नहीं रही। हम हमारे आसपास जनप्रतिनिधियों को देखें तो विरले ही मिलेंगे जो समाज की सेवा के भाव से राजनीति कर रहे हैं वरना देश प्रदेश जिला स्तर पर ऐसे नेताओं की भरमार है जो कुछ वर्षों की सत्ता पाकर अरबों खरबों के मालिक बन कर बैठे हैं परंतु ऐसे लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जिनके कारण आज भारत सम्मान से विश्व में हुंकार भर रहा है हम बात करें गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर जी की ऐसे जन नेता रहे जिन्होंने कभी शासकीय संपत्ति या संसाधनों का स्वयं या परिवार के हित में कभी दुरुपयोग नहीं किया अपितु विधान सभा या अन्य सभा स्थलों पर जाने के लिए भी मनोहर पर्रिकर जी सामान्य संसाधन व सुरक्षा का ही उपयोग करते थे गोवा के स्थानीय लोगों की जानेंगे तो समझेंगे कि मनोहर पर्रिकर जी कितनी ही बार उन्हें स्कूटर पर मुख्यमंत्री कार्यालय विधानसभा व अन्य जगह जाते हुए मिल जाते हैं, यह एक जननेता के लक्षण है । जहां आज एक विधायक अपनी चार पहिया फॉर्च्यूनर या स्कॉर्पियो से नीचे नहीं उतरता मनोहर पर्रिकर जैसे मुख्यमंत्री इस देश की राजनीति के लिए बहुत बड़ा उदाहरण बने और ऐसे अकेले व्यक्तित्व नहीं भारत ने ऐसे कितने ही मनीषियों को जन्म दिया , जिनके ह्रदय में केवल समाज हित की भावना सर्वोच्च रही उसी के साथ उन्होंने राजनीति के सभी पदों पर कार्य किया । चाहे वह विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री रहे हो परंतु स्वयं को कभी जनता से उच्च नहीं समझा उनका यही व्यक्तित्व आज देश के जनप्रतिनिधियों को समझना जानना और अपने अंदर उतारना चाहिए।
ऐसे समय में जब भारत आयात निर्यात के लिए अमेरिका व इंग्लैंड जैसे देशों पर आश्रित था, अमेरिकी दबाव के बाद भी पोखरण में परमाणु शक्ति का परीक्षण करके भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र का दर्जा दिलवाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व को हम कैसे भूल सकते है। यदि उस समय भारत को बहुमत वाली वाजपेयी सरकार मिली होती तो भारत बहुत पहले ही विकास व विश्व गुरु के पथ पर आगे बढ़ चुका होता, अटल बिहारी वाजपेयी में वैसी दूरदृष्टि थी, परन्तु समझौतों वाली निर्भर सत्ता मिलने के कारण वे एकमेव निर्णय लेने में असमर्थ रहे।
सौभाग्य से आज भारत में ऐसी सरकार है जिसके नेतृत्व पर विश्व का विश्वास बना हुआ है। नरेंद्र मोदी जैसे नेता सदियों में जन्म लेते है जो अपनी ईमानदारी, कर्मठता, राष्ट्रप्रेम से ऐसी छाप छोड़ जाते है जिसके निकट पहुचना भी असंभव सा प्रतीत होता है। जहां नोटबंदी करके देश द्रोही ताकतों की जड़ें समाप्त कर दी, आज पाकिस्तान व बंगलादेश का ध्वस्त होता आर्थिक तंत्र इसी कारण से है, इन देशों से बड़ी मात्रा में जाली नोट का व्यापार होता था, अब घुटनो पर आ चुके है, साथ ही कितनी ही देशविरोधी संस्थाएं व आतंकी गुट समाप्त हो चुके है, हजारों बैंक खाते बैंड किए गए जिनसे भारत में अशांति फैलाई जा रही थी। कोरोना काल में जहां विश्व एकाकी होकर मानवता से दूर हो रहा था, भारत ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वेज्ञानिक व शोधकर्ताओं द्वारा कोरोना वैक्सीन बनाई, विश्व के अनेक देशों को वैक्सीन निःशुल्क भेजी गई, जिससे भारत की साख व स्वाभिमान अजेय हुआ है। आज भारत से सामने से टक्कर लेने वाले देश भी हमारी आलोचना करने से पहले कई बार सोचते है। हमने देखा है जब आतंकवादी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए हमारे जवानों का बदला लेने के लिए सेना सर्जिकल स्ट्राइक करती है, उस पूरी रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सो नही पाते, पूरे मिशन की 1- 1 मिनट की खबर लेते रहते है। आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त और आतंकियों को मारकर जब पूरा सैन्य दल सुरक्षित भारतीय सीमा में प्रवेश करता है तब जाकर इन्हें चेन की सांस आती है। ऐसे कितने ही उदाहरण है जो प्रत्येक दिन प्रधानमंत्री के आस पास रहने वाले कर्मचारी, सुरक्षा दल व सह कर्मी देखते रहते है। देश के लिए जीने का यह जज्बा एक समय सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, वल्लभ भाई पटेल में देखने को मिलता था। आज चाहे दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन ISIS के कब्जे से भारतीय नर्सों को सकुशल भारत लाने की बात हो, या कश्मीर से धारा 370 समाप्त करके आये दिन होने वाले आतंकी हमलों, पत्थरबाजी पर लगी हुई रोक। हर प्रकार से देश सुरक्षित व स्वाभिमान से ओतप्रोत दिखाई दे रहा है। मेक इन इंडिया के सुविचार व उद्योगपतियों को मिले सकारात्मक परिवेश में अब भारत व्यापार जगत में अपनी धमक बना रहा है, चीन से आयात करने वाले कई देश अब भारत में बने समान को आयात कर रहे है। हम सामान्य संसाधनों में ही नही, अपितु रक्षा सौदों में भी आगे बढ़ रहे है। वैज्ञानिकों के सम्मान व उन्हें मिलती प्राथमिकता के कारण देश गर्व से अंतरिक्ष व अन्य शोध क्षेत्रों में नित नए आयाम गढ़ रहा है।
एक और जननेता जिसका जितना बखान किया जाए कम है, जिसने उत्तरप्रदेश जैसे क्राइम केपिटल राज्य को आज विकास, पर्यटन, शिक्षा व अध्यात्म की और मोड़ दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा नेता भारत में सर्वजन लोकप्रिय होते जा रहे है। इसका मुख्य कारण वोटबैंक की राजनीति को लात मारकर राष्ट्र नीति से राज्य चलाने की क्षमता है। जिस प्रकार प्रभु श्री राम ने अपना राज्य जनता के हित में चलाया उसी प्रकार योगी आदित्यनाथ भी आरंभ से सर्व जनहित मैं उत्तर प्रदेश को पिक्चर राज्य बनाने के लिए संकल्पित हैं इतना ही नहीं संस्कृति व देश की दशा व दिशा सुधारने में एक जन नेता की क्या भूमिका होना चाहिए यह आज के समय में भारत के एक ही मुख्यमंत्री से सीखा जा सकता है और वे योगी आदित्यनाथ हैं, भूमाफिया हो या बाहुबली अपराधी सभी डर के मारे पुलिस से शरण मांग रहे है, किसी समय अपराध, फिरौती, भ्रष्टाचार का गढ़ बब चुका उत्तरप्रदेश अब देश के सुशासित व विकासशील राज्य में गिना जा रहा है, अयोध्या जो कि अब तक सुनी सुनाई दिखाई पड़ती थी, योगी आदित्यनाथ की सत्ता में कायाकल्प होकर आज देश का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल बनने की और अग्रसर है। रामजन्मभूमि के विशाल मंदिर के बनते ही विश्व का समस्त हिन्दू समाज अयोध्या, मथुरा, काशी में पर्यटन के लिए आने वाला है, उत्तरप्रदेश पुनः भारत का आध्यात्मिक केंद्र बन रहा है, यह किसी संत की सत्ता में ही संभव है, ऐसे जननेता योगी आदित्यनाथ को भगवान व जनता का असीम आशीष मिले।
— मंगलेश सोनी