मुक्तक/दोहा

नव संवत्सर के दोहे

संवत्सर आया नया,गाने मंगल गीत ।
प्रियवर अब दिल में सजे,केवल नूतन जीत ।।
उसकी ही बस हार है,जो माना है हार ।
साहस वाले का सदा,विजय करे श्रंगार ।।
बीते के सँग छोड़ दो,मायूसी-अवसाद ।
दो हज़ार अस्सी सुखद, धवल,कर देगा आबाद ।।
खट्टी-मीठी लोरियां,देकर गया अतीत।
वह भी था अपना कभी ,था प्यारा सा मीत ।।
जाते -जाते वर्ष यह,करता जाता नेह ।
अंतर इसका जनवरी,भले दिसंबर देह ।।
फिर से नव संकल्प हो, फिर से उत्थान।
फिर से अब जयघोष हो,हो फिर से नव गान ।।
नया सूर्य ले आ गया,नया शौर्य,नव ताप ।
लिये आप आवेग यदि,नहीं बनोगे भाप ।।
नहीं शिथिलता हो कभी,नहीं चरण हों मंद।
गिरकर फिर आगे बढ़ो,काम नहीं हो बंद ।।
चैत्र प्रतिपदा आ गई,सभी लिये उत्साह ।
बात बने तब ही सदा,बनो वक़्त के शाह ।।
दोस्त,मित्र,बंधू,सखा,रक्खो सँग नववर्ष ।
मिले तुम्हें खुशियां “शरद”,मिले सुखद नव हर्ष ।।
— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]