नववर्ष
है झूम उठे धरती अंबर , पत्ता पत्ता हरषाया है ।
महके हैं सारे दिग दिगंत ,नववर्ष हमारा आया है।
पतझड़ का दुखद समय बीता ,
आशा के नव कोपल फूटे ।
तरुओं की रिक्त पुस्तिका पर,
विधिना ने रचे फूल बूटे ।
कोमल कलियों का आलिंगन, रसिया मधुकर को भाया है।
महके हैं सारे ………………………
महुआ महकाये ऊषा को ,
रातो को नीम महकाती है ।
आमों की डाली पर चढ़कर ,
पंचम स्वर कोयल गाती है।
रक्तिम छवि के फूले पलाश , देखो रसाल बौराया है ।
महके हैं सारे……………………………
बागों मे आया है बसंत ,
द्वारे पर नई फसल आई।
पुलकित हैं सारे जड़ चेतन,
है शस्य श्यामला हरषाई ।
धरती का सुंदर रूप देख करके अनंग शरमाया है।
महके हैं सारे………………………….
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी