कविता

अवसाद

आज अवसाद आम समस्या बन गई है
इंसानों से जैसे इसकी रिश्तेदारी हो गई है।
आधुनिकता की ओट में हम
अवसाद पालने लगे हैं,
बढ़ रही अवसाद की समस्या के
हम पतवार बन गये हैं।
हम खुद अवसाद को निमंत्रण दे रहे हैं,
हम ही इसे पालपोसकर बड़ा भी कर रहे हैं।
अवसाद बीमारी से महामारी बन गई है
सब कुछ जानकर भी हम अवसाद को
खुला निमंत्रण दे रहे
आवभगत कर तरोताजा रख रहे हैं
अपने दुश्मन को हम ही
जानी दुश्मन बना रहे हैं
अवसाद से बचने का नाटक कर रहे हैं
अपने आप से ही नहीं
परिवार समाज से भी
भद्दा मजाक कर रहे हैं,
अवसाद को हम ही खुला आकाश दे रहे हैं
और हम ही परवान चढ़ा रहे हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921