कविता

आत्मविश्वास

 

आइए अपने आप में

आत्मविश्वास जगाते हैं

उम्मीद की बुझती लौ को जलाते हैं।

बहुत कुछ खोया हमने

जबसे हमारा आत्मविश्वास डगमगाया।

हर वो जीत हाथ से फिसल गई मुझसे

जो मुझे मिलनी थी

मगर हार मिली और मुंह छिपाया हमनें।

फिर एक अबोध अंजाना शख्स मिला

उसने मुझे देखा परखा

मेरी परेशानी को समझा

मुझे एक बार फिर जैसे सोते से उठाया

बड़े बुजुर्ग की तरह दुलारा

और फिर मेरे सो चुके आत्मविश्वास को जगाया।

मैं भी जैसे सोते से जाग गया

अपना खोया आत्मविश्वास वापस पा लिया

उस अबोध से वादा भी किया

अब जो भी हो जाये

अपने आत्मविश्वास को सोने नहीं दूंगा

जीवन पथ पर आत्मविश्वास के साथ ही

अब सदा ही आगे बढूंगा।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921