कविता

बेबसी

बेबसी की बंधन ने हमें है    मारा
वक्त ने जब जब हमको ललकारा
हमने बढ़कर दिया सबको जवाब
कमजोर ना समझना हमें  जनाब

बेबस हूँ पर हम डरपोक     नहीं
घायल हूँ तन से पर मौन     नहीं
जब जब उठेगी बगावत की हुँकार
विफलता झुक जायेगी हो शर्मसार

कैसे दिखलाऊँ मन की उठी ज्वाला
समय ने जड़ दी है पैर में बड़ी ताला
कभी तो खुलेगी बंद यह      दरबार
खुल जायेगी तब सफलता के द्वार

पीछे मुड़ कर हम कभी ना देखेगें
पथ के काँटे पैरों तले तब रोदेंगें
कभी तो आयेगी गिरफ्त में हार
जीत की परचम लहरायेगें तब यार

वक्त बड़ा बना है मेरे साथ बेरहम
पर निकलेगा इक दिन इनका दम
समय की चक्र जब करेगी प्रहार
हर  मोड़ पे गुजेंगी जीत जयकार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088