लघुकथा – पिता की कमीज
पुत्र अक्सर देखता कि पिता एक ही कमीज को धो-धोकर पहन रहे हैं। कमीज काफी पुरानी हो गई है। पिता उसी कमीज को पहनकर काम पर जाते हैं।
पुत्र हर महीने अपनी पगार से पिता के लिए कमीज लेने की सोचता पर घर के सौ खर्चे में ले नहीं पाता। कभी बच्चा बीमार हो जाता कभी बीबी के ख़र्चे। वह मन मसोस कर रह जाता।
बूढ़े पिता अब भी काम पर जाते ताकि इस महंगाई में घर का कुछ सहयोग हो सके। वो भी देखते कि पुत्र की कमीज काफी पुरानी हो गई है। उन्हें दुःख होता कि इस उम्र में लड़के बढ़िया-बढ़िया पहनते हैं पर उनका पुत्र गृहस्थी के भँवर जाल में फंसकर रह गया है। वो अपने लिए नई कमीज तक नहीं ले पा रहा है जैसे कि वे स्वयं । पिता ने तय किया कि इस महीने की पगार से वो अपने पुत्र के लिए एक नई कमीज जरूर खरीदकर उपहार में देंगे।
आज दीपावली है। पुत्र ने सोचा कि आज वह अपने पिता को एक नई कमीज जरूर देगा ।चाहे वह मिठाई न खरीदे। उसने एक स्लेटी रंग की नई कमीज खरीदी और घर चला आया।
पिता को नई कमीज का गिफ्ट पैक देते हुए उसने कहा-“पिताजी, ये आपके लिए है।”
पिता ने भी उसे एक गिफ्ट पैक देते हुए कहा-“बेटे, मैं भी तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ।” यह कहते हुए उन्होंने एक गिफ्ट पैक पुत्र के हाथों थमा दिया।
पुत्र ने विस्मित नेत्रों से उस गिफ्ट पैक को खोला तो वह आश्चर्य से भर उठा। उसमें एक आसमानी रंग का टी शर्ट था। यह देखकर वह पिता के गले से लिपट गया।
पुत्र का दिया हुआ गिफ्ट देखते ही पिता की आंखें भी छलछला आईं।
दूर खड़ी माँ पिता-पुत्र के प्रेम को देखकर मुस्कुरा रही थी।
— डॉ. शैल चन्द्रा