गीतिका/ग़ज़ल

दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे

सजने सँवरने की ज़रूरत ही क्या है
दिखावा नही तो ये और क्या है
कई तीर तरकस में रख कर चलना
जुल्फ़े लहराने की जरूरत ही क्या है

लुटेरों उच्चकों से भरी है ये दुनियां
शरीफों की सुनती कहाँ है ये दुनियां
दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे
तिज़ारत दिखाने की ज़रूरत ही क्या है

सरे राह कत्लेआम हो करते
धड़कने बज़्म की जाम हो करते
सादगी से नाता तुम्हारा नही है
ये जलवे दिखाने की ज़रूरत ही क्या

अभी बारिश हुई है भीगा समां है
सितम उस पे ढाता तुम्हारा कमां है
बेवजह ही पतिंगे जलाने चले हो
दिया यहाँ जलाने की ज़रूरत ही क्या है

दामन पे रखते नही जोर कोई
काँटों में फसता तेरा छोर कोई
सूलों की फितरत चुभना यहाँ पर
हवा में उड़ाने की जरूरत ही क्या है

राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उत्तर प्रदेश

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782