दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे
सजने सँवरने की ज़रूरत ही क्या है
दिखावा नही तो ये और क्या है
कई तीर तरकस में रख कर चलना
जुल्फ़े लहराने की जरूरत ही क्या है
लुटेरों उच्चकों से भरी है ये दुनियां
शरीफों की सुनती कहाँ है ये दुनियां
दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे
तिज़ारत दिखाने की ज़रूरत ही क्या है
सरे राह कत्लेआम हो करते
धड़कने बज़्म की जाम हो करते
सादगी से नाता तुम्हारा नही है
ये जलवे दिखाने की ज़रूरत ही क्या
अभी बारिश हुई है भीगा समां है
सितम उस पे ढाता तुम्हारा कमां है
बेवजह ही पतिंगे जलाने चले हो
दिया यहाँ जलाने की ज़रूरत ही क्या है
दामन पे रखते नही जोर कोई
काँटों में फसता तेरा छोर कोई
सूलों की फितरत चुभना यहाँ पर
हवा में उड़ाने की जरूरत ही क्या है
राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उत्तर प्रदेश