बाल कविता
नटखट बच्चे नटखट खेल
कभी झगड़ते करते मेल
इधर उधर ये खूब दमकते
खेलों का नएं सृजन करते
लुका छिपी , पकड़म पकड़ाई
कभी कब्बड़ी कभी फुटबॉल
तरह तरह के खेल से अपने
सबके दिल मन को खूब भाते
गोलू मोलू पीहू सब मिल
खेल खेल में खूब इतराते
दादाजी फटकार लगाते
शाम को सब अपने घर जाते।
विजया लक्ष्मी