मां गंगे
हे नीरझरनी पाप विनाशनी
विनय करु मैं शीश झुकाई
हो तुम्हीं सबके मोक्षदायिनी
पतित पावन नाम है गंगा
भागीरथी ने किया तप भारी
जो लाए धरा सुरसरित गंगा
पापियों के स्पर्श मात्र से
पाप कटे मन शीतल होवे
शंकर जटा में विराज रही मां
भक्तों के कार्य सवारन वारे
हे मंदाकिनी , हे ध्रुव नंदा
मन में आश लगा के आई हूं दर पे
पूरी करो मां मन की मुरादे
बाटॅ निहारू मैं झोली पसारे
निर्मल निरंतर बेग से बहती
चाहे मार्ग में आए बाधा भारी
वैसे ही तेज मां मुझमें भरदो
कदम रुकें ना मां कभी मेरी
तेरी कृपा से चलती है नैया
उबारो भव से खड़ी मेरी नैया।
— बिजया लक्ष्मी