काग़ज़ बोले घायल परिंदा
दिल हुआ था कभी इतना आघात
आंसूंओं से भरी थी वीना हाय
गुज़रे दर्द संग कितने दिन , रात।।
फिर भी ग़म ना घटा उसका वो तो
लिखी काग़ज़ पर नित हर बात।।
सुनने वाला कोई नहीं था उसको
अपनी ही कलम से की उसने हर बात।।
सुन काग़ज़ों ने हर वेदना उसकी कहा
आया घायल परिंदा है मेरे पास।।
सहारा दिया उसकी कलम ने उसको
पढ़ उसकी वेदना कोई हसा कोई रोया
कोई कहा वाह क्या बात।।
कोई नाम दे कहा उसको पागल हे तू
कोई पहनाया दर्द ए शायरा कह ताज।।
आज वर्षों बीत गये कलम और वीना
की यारी देखते-देखते मुझे
सच आज भी वही वीना , वही कलम
वही काग़ज़ मेरे साथ
कोई मरहम लगा ना पाया वीना को
यही बतानी थी मुझे सभी को बात।।
सुना था घायल इंसा बने शायर दर्द में
हकीकत से भरी है इन शब्दों की सौगात।।
— वीना आडवाणी तन्वी