कविता

काले बदरा

गगन पे विचरण करने वाले बदरा
वर्षा दे मेरे प्याले में तूँ       मदिरा
जब जब सावन में तुम    आयेगा
जाम से जाम मिलकर टकरायेगा

गम को भुलाने में मेरी मदद तुँ करना
मयखाने में जाम शराब का है भरना
साकी मेरी रूठ कर मायके गई।    है
सौगात तन्हाई की भेंट कर गई     है

नभ  पे चन्दा जब पूरब में आती है
ख्यालों में उनकी अक्स सजा देती है
कैसे पागल दिल को मैं     समझाऊँ
प्यार की लंका को कैसे खुद जलाऊँ

किस खता की सजा मुझे मिली है
कौन सी फितरत से खफा हुई है
जख्म जिगर की मरहम़ तुं भरना
गम को भुलाने में मदद भी करना

आलम तन्हाई का अब ना सहेगें
मोहब्बत की मशाल जरूर जलेगें
राज को राज नहीं है अब रखना
जग वाले से काहे को है डरना

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088