ग़ज़ल
खिला जब फूल चम्पा चमन चाहत के नजारो में
कि जैसे एक नया कोपल निराला बन बहारो में|
मिले जब ताजगी आती महक भी मन लुभाती सी
चला लेकर सुनाने को मग्न मन भी निहारों में|
घुमे खग भी दिखे उड़ते निकल अपनी पनाओ से
बुला सब को सुनाये गीत मनभावन इशारों में|
भरी प्यारी कुहू कोयल सुनती गान चाहों के
हिया भी मचल पाया जान अफसाना करारों में|
हुआ पल आकर्षित खोये लुभाये जग पुकारों में
देखूं “मैत्री” सदा उभरे हुए हसीन विचारों में|
— रेखा मोहन