दिल भावुक हो जाता है।
छोटे छोटे हाथों से जब,श्रम करवाया जाता है।
उदरपूर्ति करने को जब,अधिमान कर्म बन जाता है।
मां बाप की जिम्मेदारी को,जब बालक कोई निभाता है।
मैं अन्तर्मन से कहता हूं,ये दिल भावुक हो जाता है।
दुर्भाग्य किताबें छू न सका,न कलम-लेखनी हाथ गही।
बस साथी कुदाल फावड़ा हैं,बचपन भी छूटा दूर कहीं।
बाल दिवस वाले दिन भी ,जब बचपन बोझ उठाता है।
मैं अन्तर्मन से कहता हूं,ये दिल भावुक हो जाता है।
जन्मदात्री माता को जब,बेटा आंख दिखाता है।
और तात के लिए पुत्र यहां,कंस तुल्य बन जाता है।
जब बूढ़े थके हुए जोड़े को,आश्रम में छोड़ा जाता है।
मैं अन्तर्मन से कहता हूं,ये दिल भावुक हो जाता है।
मां के ऋण से कोई उऋण नहीं,इस जीवन में हो पायेगा।
दशरथ के जैसे बापू को,न राम पुत्र मिल पायेगा।
चार दिनों के प्यार में जब,घर द्वार भुलाया जाता है।
मैं अन्तर्मन से कहता हूं,ये दिल भावुक हो जाता है।
एक कोख से जन्म लिए,भाई भाई न एक हुए।
जर,जोरू और जमीन रूप में ,कारण कई अनेक हुए।
भाई भाई के झगड़े का,बाहरी आनंद उठाता है।
मैं अन्तर्मन से कहता हूं,ये दिल भावुक हो जाता है।
स्वरचित रचना, प्रदीप शर्मा ✍️