किसको फिर से राम बनाऊँ
सोच रहें है नारायण भी
कैसे भारत भूमि बचाऊँ
हर युग मे अवतार धरूँ क्या
बार बार धरती पर आऊँ
आज सनातन शिथिल पड़ा है
कैसे उसको पुनः जगाऊँ
कौन बनेगा तारणहारा
किसको फिर से राम बनाऊँ
राम बहुत चिंता में बैठे
देख विधर्मी के दल को
व्याकुल हो कर आज देखते
बलशाली होते खल को
दुष्ट बहुत इतराया घूमे
सहमा सहमा सनातनी है
राम नाम लेने भर से ही
आर्यावृत में तनातनी है
कितना रक्तिम दिनकर होगा
कितना शोणित और बहेगा
कितनी लाशों पर रूदन का
कष्ट सनातन और सहेगा
अंधकारमय कल दिखता है
किसको अपनी व्यथा सुनाऊ
कौन बनेगा तारणहारा
किसको फिर से राम बनाऊ
— मनोज डागा राजस्थानी