ग़ज़ल
आप बहरे हैं ये गनीमत है ।
बोलने की हमें तो आदत है ।
बात करते थे फूल झड़ते थे,
अब तो लड़ना ही एक आदत है।
वस्ल के दिन ये हो गए छोटे,
हिज्र की रात में बरक्कत है ।
टूटा इतनी दफा ये दिल मेरा,
अब तो मुश्किल हुई मरम्मत है ।
मुँह फुलाकर के पास बैठे हैं,
बस यही हासिले मुहब्बत है ।
इश्क़ का स्वाद है बड़ा मीठा,
इसकी तासीर में ही गफ़लत है ।
— गुंजन अग्रवाल ‘अनहद’