मरुभूमि समान न शुष्क बनो,
अब बादल भी बनके बरसो।
प्रिय चाहत सागर की समझो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो ।।१।।
घट यौवन व्यर्थ न बन्द करो,
छलको मम प्यास बुझा अब दो।
मृदु कोकिल नाद जरा कर लो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।२।।
नवराग सुनाकर प्यारभरा,
यह शाम सुकून से युक्त करो।
फिलहाल खुशी यह दो मुझको,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।३।।
उलझूँ कच-कानन में हंसता,
सिमटूँ सुख-आँचल में शिशु-सा।
कर प्रेम प्रस्वेदभरा कर दो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।४।।
धड़के दिल देख तुझे बहुधा,
तड़पे तन भी छवि कोमल से।
मचले मन की अब प्यास हरो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।५।।
दिन भी रजनी सम यौवन में,
लगता दुनिया सिमटी तुझमें।
धन-वैभव तुच्छ लगे अब तो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।६।।
तुझसे रह दूर घुटे दम है,
यह शीतल चाँद भी गर्म लगे।
मिल व्याकुलता दिलकी हर लो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।७।।
तुमसे रह दूर न चैन मिले,
खुद से करूँ द्वेष न कष्ट मिटे।
अब सुन्दरि! दर्प जरा तज दो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।८।।
हर श्वास तथा दिल में तुम हो,
तुम बन्धु,सखी, तुम जीवन हो।
हृदयेश्वरि! प्राणप्रिया तुम हो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।९।।
टुकड़े दिलके करके न हंसो,
फरियाद करूँ अब प्यार करो।
यह ख्वाब हकीकत में बदलो,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।१०।।
न बसे इन नैनन में सपने,
तुमसे मिल दूर हुए अपने।
फिर भी न गिला शिकवा मुझको,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।११।।
न दुआ दिलकी सुनता रब है,
तुमको न कुबूल बफ़ा सच है।
पर जीवन अर्पित है तुमको,
मुझसे तुम प्रेयसि! प्यार करो।।१२।।
— डॉ. युवराज भट्टराई