क्षण भंगुर दुनियाँ
मत कर तुँ गुमान किसी का
कुछ भी नहीं यहाँ स्थाई है
पानी की बुलबुले है जिदंगी
थोड़ी देर के लिये परछाईं है
सूरज अस्त जब पश्चिम में होगा
जगत में अंधियारा छा जायेगा
हर कुछ जो तुमको दीखता है
कुछ भी तुम्हें नजर ना आयेगा
ये दौलत ये तन ये सब महल
सब कुछ छुट ही जायेगा
जो भी कमाया है जग में सब
कुछ भी साथ तेरा ना जायेगा
कुछ भी जग में तेरा नहीं है
फिर क्यूँ जग में मारा मारी है
शमशान तक कफन ही जायेगा
फिर काहे की ये धन चुराई है
ताम झाम सब फितरत का खेल
फिर किस बात की करता गुमान
टुट जायेगी जिस दिन सॉसे तब
टुट जायेगी तेरी सब ये अभिमान
सारा जगत है उस ईश्वर का
तुम एक महज किरायेदार यहॉ
जब सब कुछ् चन्द दिनों का है
तब नाम कमा बन जाओ महान
— उदय किशोर साह