हम रोज मूर्ख बनते हैं
एक अप्रैल को हम सब मूर्ख दिवस मनाते हैं
आज के दिन लोगों मूर्ख बनाने का
हम जैसे जन्मसिद्ध अधिकार पा जाते हैं
और लोगों को बेवकूफ बनाते हैं
बड़ा खुश होते तालियां बजाते हैं
जैसे बड़ी डिग्री पा जाते हैं।
पर यह मत भूलिए कि हम सब
पहले से ही रोज मूर्ख बनते हैं
और बड़ी मूर्खता ही करते हैं
अपनी मूर्खता को स्वीकार नहीं करते
क्योंकि हम मूर्ख जो होते हैं।
नेता रोज मूर्ख बनाते और तालियां बजवाते हैं
और हम बनते और हंसते हैं
मजे से मूर्ख बनकर भी इतराते हैं।
सरकारें हर साल हमें मूर्ख बनाती हैं
हमारी भलाई कम मूर्ख ज्यादा बनाती हैं
नये नये नियम आज से तो लागू करती हैं
बड़े प्यार से हमारी जेब पर कैंची चलाती हैं
हमारा खूब मजाक उड़ाती हैं
मुफ्त बिजली पानी राशन और
जाने किस किस की आड़ लेकर
बड़े प्यार से हमें मूर्ख बनाती हैं।
सरकारी तंत्र तो जैसे
बस मूर्ख बनाने के लिए कमर कसे हैं,
आपको खूब दौड़ाते हैं
हर बार नये नियम बताते
नये नये कागज मांगते
या फिर नुक्स निकाल कर
कल आना,परसों आना,
साहब नहीं हैं,साहब बिजी हैं
कहकर खूब घुमाते हैं।
धरती के भगवान भी जाने क्या क्या गुल खिलाते हैं
छोटी सी बीमारी को बहुत बड़ा और गंभीर बताते
जो बीमारी नहीं वो तक बताते हैं
जो है वो उसे बड़े प्यार से छुपाते हैं
लालच इतना कि धन लाभ के चक्कर में
इलाज के नाम पर बड़ा बड़ा इलाज करते हैं
मंहगी दवाओं से बेड़ा गर्क करते हैं
साथ ही नई गंभीर बीमारी थमाते हैं।
बिना जरूरत ही आपरेशन की बात बता डराते हैं
मजबूर हो हम बेवजह डर के मारे
चीर फाड़ के लिए तैयार हो जाते हैं
अपनी गाढ़ी कमाई फूंक देते हैं
धन धर्म दोनों गंवाते हैं।
बहुत बार तो मुर्दों तक को
जिंदा होने के नाम पर
हमें डराया और लूटा जाता है
वो इलाज करते और हमें खुलेआम लूटते नहीं
हमारा गला काटने के साथ मूर्ख भी बनाते हैं
अपनी तिजोरियां भरते हैं।
ठीक वैसे ही जैसे हम आप भी
रोज ही अपने और अपनों को
दैनिक दिनचर्या, काम धाम में
विश्वास की छाया तले रोज ही
मूर्ख बनाते और बनते हैं।
हर कोई हर किसी को मूर्ख बनाने कर आमादा है
वो ये कभी नहीं सोचता कि वो खुद ही
शायद मूर्ख थोड़ा ज्यादा है।
और तो और हम मूर्ख बनाने के चक्कर में
जब तब हम खुद ही बाखुशी मूर्ख बन जाते हैं
ये और बात है कि ये बात हम समझते कहां हैं
कि सबसे बड़े मूर्ख तो हम खुद बनते हैं
और औरों को बेवकूफ बनाने का यत्न करते रहते हैं।
उल्टे औरों का उल्लू सीधा करते हैं
और हम लगता है कि
हम सामने वाले को उल्लू बना रहे हैं,
परंतु हम अपनी ही मूर्खता का परिचय दे रहे हैं
तब भी कितने उल्लास से मूर्ख दिवस मनाते हैं
और बड़ी बेशर्मी से खीस निपोरते हैं
मूर्खतावश हम ही मूर्ख दिवस को सार्थक करते हैं।