कोलकाता के कोलाहल में…
टूटे सपनों की किरचें बार बार बटोरता हूं
कोलकाता के कोलाहल में खुद को ढूंढता हूं,
टूटी उम्मीद की कड़ियाँ बार बार जोड़ता हूं,
कोलकाता के कोलाहल में खुद को ढूंढता हूं,
कैश ना सोना, बस दिल का सुकून ढूढ़ता हूं,
कोलकाता के कोलाहल में खुद को ढूंढता हूं
— तारकेश कुमार ओझा