देश
अभी एक युग नव जगेगा ।
तभी भेद मन का मिटेगा ।।
रहें लोग मिलकर सभी अब।
यही भाव दिल से उठेगा ।।
यही भाव दिल में उठे की ।
सदा देश उन्नति करेगा ।।
नहीं आज दुखिया कहीं हो।
यही काम सुन्दर चलेगा ।।
नहीं काम कोई कठिन है।
नया फूल कोई खिलेगा ।।
करे हाथ रक्षा हमेशा ।
यहाँ दीप जब जब जलेगा ।।
कहीं हाथ थामें किसी का।
उसे एक साथी मिलेगा।।
नया कुछ करें कार्य मिलके।
नहीं नभ धरा को छलेगा।।
शपथ सब चलो आज खायें।
तभी देश ऊपर रहेगा ।।
— डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”